Tuesday, December 20, 2011

good thought

अगर हम बेलगाम & मनचाहा बोलेंगे तो हमें वह सुनना भी पड़ेगा जो हम नहीं सुनना चाहते, धर्म अनुसार हमारी वाणी सूत्रात्मक, स्नेहात्मक और 




शास्त्रात्मक हो, अगर वाणी में एकाग्रिता & अनुशाशन हो तो जीवन में संभल आता है..एक भक्त था ,वोह बिहारी जी को बहुत मानता था ! एक दिन वोह श्री भगवान को कहने लगा"मैं आपको बहुत मानता हूँ ,पर आज तक मुझे आपकी अनुभूति नहीं हुई !आप चाहे मुझे दर्शन न दे ,लेकिन कुछ ऐसा करे कि मुझ को अनुभव हो कि आप हो ! तब श्री भगवान ने कहा कि.. ठीक है तुम रोजाना सुबह समुन्द्र किनारे सैर करने जाते हो ,जब भी तुम रेत पर चलोगे तुम को चार पैरों के निशान दिखाई देंगे ! दो तुम्हारे होंगे और दो मेरे ! और इस ...तरह तुमको मेरी अनुभूति भी हो जाएगी ! अगले दिन से वास्तव में ही ऐसा होने लगा और वो भक्त बहुत खुश हुआ !अब रोज़ ऐसा होने लगा ! समय हमेशा एक जैसा नहीं रहता ,भक्त को व्योपार में असीम घाटा हुआ और और वोह सड़क पर आ गया ! अपनों ने भी साथ छोड़ दिया ! दुनिया की यही रीत है,मुसीबत में अपने भी साथ छोड़ देते हैं ! वोह जब भी सैर पर जाता ,उसको दो पैर ही दिखाई देते ,वोह सोचता की श्री भगवान ने भी मुसीबत में साथ छोड़ दिया ! धीरे धीरे उसने व्योपार को फिर से स्थापित किया ,काम ठीक होने लगा ,फिर पहले जैसी हालत हो गयी,जो साथ छोड़ गए थे वोह फिर वापिस आने लग गए यह भी दुनिया की रीत है ! अब जब वोह सैर पर गया तो फिर उसको चार पैर दिखाई दिए ........श्री भगवान भी लौट आये ,यही उसकी सोच बनी ! उस से रहा नहीं गया उसने श्री भगवान से पूछ ही लिए"बुरे वक्त में तो साथ सबने छोड़ दिया ,यह दुनिया की रीत है, मुझको इस बात का कोई दुःख नहीं ! लेकिन आप भी साथ छोड़ जायेंगे ,ऐसा नहीं सोचा था, आपने ऐसा क्यों किया ? तब श्री भगवान ने कहा कि.."तुमने यह कैसे सोच लिया कि मैं तुमारा साथ छोड़ दूंगा ! तुम्हारे बुरे वक्त में ,तुम जो दो पैरों के निशान देखते थे ,वो तुम्हारे पैरों के नहीं होते थे,बल्कि वो मेरे पैरों के होते थे ! उस समय मैं तुमको अपनी गोद में उठा कर चलता था! और आज जब तुम्हारा बुरा वक्त ख़त्म हो गया है तो मैंने तुम्हे निचे उतार दिया है !इसलिए तुम्हे फिर से चार पैर दिखाई देने लग गए हैं







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